MP BOARD CLASS 9 HINDI SOLUTIONS
MP Board Class 9th HINDI Solutions in Hindi Medium |
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- |
1. स्वार्थ और परमार्थ मानव की प्रवृत्तियाँ हैं । हम अधिकतर सभी कार्य अपने लिये करते हैं, पर' के लिए सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानवता है । यही धर्म है यही पुण्य है । इसे ही परोपकार कहते हैं । प्रकृति हमें निरंतर परोपकार का संदेश देती है । नदी दूसरों के लिए बहती है । वक्ष मनुष्यों को छाया तथा फल देने के लिए ही धूप आँधी वर्षा और तूफानों में अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। उत्तर-परोपकार (2) सच्ची मानवता क्या है? उत्तर-दूसरों के लिए सब कुछ बलिदान कर देना ही सच्ची मानवता है। (3) वृक्ष हमें परोपकार का संदेश कैसे देते हैं? उत्तर- वृक्ष मनुष्यों को छाया तथा फल देने के लिए धूप, आँधी, वर्षा और तूफानों में अपना सब कुछ बलिदान करके हमें परोपकार का संदेश देते हैं। (4) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- सारांश-अपने लिये कार्य करना स्वार्थ और दूसरों के लिए सब कुछ लुटा देना परोपकार कहलाता है । परोपकार ही सच्ची मानवता, धर्म तथा पुण्य है । नदियाँ तथा वृक्ष दूसरों का हित करके परोपकार का संदेश देते हैं । 2. मानव का अकारण ही मानव के प्रति अनुदान हो उठना न केवल मानवता के लिये लज्जाजनक है, वरन् अनुचित भी है। वस्तुतः यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना तो दूर रहा, उपेक्षा का भी पात्र नहीं होना चाहिये। मानव के योग्य है कि वह मानव है। भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना है। प्रश्न (1) उक्त अवतरण का शीर्षक बताइये। उत्तर- "उदारता" शीर्षक है। (2) उक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- सारांश-प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि दूसरों के प्रति उदार भाव रखना उदारता है । उदार व्यक्ति समाज में एक सेवक एक तरह है तथा वह अपने कार्यों को प्रदर्शित नहीं करता बल्कि वह प्रत्येक मनुष्य को मनुष्य समझता है । प्रश्न 1:- निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए। गद्यांश - 01 आप हमेशा अच्छी जिंदगी जीते आ रहे हैं। आप हमेशा बढ़िया कपड़े, बढ़िया जूते, बढ़िया मोबाइल जैसे दिखावों पर बहुत खर्च करते हैं मगर आप अपने शरीर पर कितना खर्च करते हैं ? इसका मूल्यांकन जरूरी है। यह शरीर अनमोल है। अगर शरीर स्वस्थ्य नहीं होगा तो आप ये सारे सामान किस पर टांगेंगे ? अतः स्वयं का स्वस्थ्य रहना सबसे जरूरी है एवं स्वस्थ्य रहने में हमारे खान-पान का सबसे बड़ा योगदान है। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। ब. अनमोल क्या है ? स. गद्यांश का संक्षिप्त सारांश लिखिए। उत्तर- अ. स्वस्थ्य शरीर : अनमोल देन। ब. यह शरीर अनमोल है। स. सारांश - यह शरीर अनमोल है। इसका स्वस्थ्य रहना जरूरी है। स्वस्थ्य रहने के लिए हमारा खान-पान अच्छा होना चाहिए। गद्यांश - 02 "आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है। जीवन का प्रत्येक क्षण वह कर्म में लगाता है। विश्राम और विनोद के लिए उसके पास निश्चित समय रहता है। शेष समय जन सेवा में व्यतीत होता है। हाथ पर हाथ धर कर बैठने को वह मृत्यु के समान समझता है। काम करने की उसमें लगन होती है, उत्साह होता है। विपत्तियों में भी वह अपने चरित्र का सच्चा परिचय देता है। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। ब. उपर्युक्त गद्यांश में वर्णित व्यक्ति के गुण लिखिए। स. आदर्श व्यक्ति क्या करता है ? उत्तर- अ. कर्मशील व्यक्ति' ब. लगनशील; उत्साही, दृढ़ चरित्र, कर्मशील आदि गुणों का वर्णन किया गया है। स. आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है। गद्यांश -03 अगर मनुष्य में कर्त्तव्यबोध नहीं है तो वह उच्च पद प्राप्त करके भी समाज के सापेक्ष असफल ही कहा जाएगा। उच्च शिक्षा व योग्यता तभी उपयोगी है, जब व्यक्ति समाज व राष्ट्र के हित में उसका उपयोग करें। कर्त्तव्य बोध की भावना से परिपूर्ण व्यक्ति ही अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में खरे उतरते हैं। सचमुच में ऐसे व्यक्ति ही सही अर्थ में राष्ट्र-सेवक होते हैं। एक शिक्षक कितना ही विद्वान क्यों न हो अगर उसमे अपने विद्यार्थियों के प्रति कर्तव्य-बोध न हो तो वह कभी भी राष्ट्र-निर्माता नहीं हो सकता। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। स. उच्च शिक्षा व योग्यता कब उपयोगी है? उत्तर- अ. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है- कर्तव्य बोध । ब. सारांश- कर्त्तव्यबोध से युक्त व्यक्ति ही समाज व राष्ट्र के लिये उपयोगी है ऐसे व्यक्ति ही सही अर्थ में राष्ट्र सेवक होते हैं। एक शिक्षक विद्वान होते हुए भी कर्त्तव्यबोध के अभाव में राष्ट्र निर्माता नहीं बन सकता। स. उच्च शिक्षा व योग्यता तभी उपयोगी है जब वह समाज व राष्ट्र के लिये उपयोग की जा सके। गद्यांश - 04 स्वस्थ्य शरीर के साथ ही स्वस्थ्य मनोरंजन भी मनुष्य के लिए आवश्यक है। खेल ऐसी क्रिया है जिससे न केवल शरीर का विकास होता है अपितु मनोरंजन भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि सभ्यता के आदिकाल से ही मानव समाज में खेलों का प्रचलन रहा है। आज से पचास हजार वर्ष पूर्व की मानव सभ्यता को दर्शाने वाले भित्ति-चित्र प्राचीन गुफाओं में देखने को मिलते हैं। भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बिना किसी खर्च के खेला जा सकता है। इन खेलों में कबड्डी, खो-खो आदि प्रसिद्ध है। प्रसन्नता की बात है कि कबड्डी व खो-खो को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हो गई है। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- अ. “खेलों का महत्व" ब. भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इन्हें बिना किसी खर्च के खेला जा सकता है। स. सारांश- खेलों के द्वारा न केवल मनोरंजन होता बल्कि शरीर भी स्वस्थ रहता है यही कारण है कि आदिकाल से ही खेलों की परम्परा रही है। इस क्रम में भारतीय खेलों जैसे- कबड्डी, खो-खो आदि को बिना किसी खर्च के भी खेला जा सकता है। प्रसन्नता की बात है कि इन खेलों को अंतराष्ट्रीय स्तर भी मान्यता प्राप्त हो गई है। गद्यांश – 05 एकल परिवारों के चलन से मित्रता का महत्व और अधिक बढ़ा है। संयुक्त परिवारों के अभाव में विपरीत परिस्थितियाँ मित्रता की माँग करती हैं। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसके सामाजिक विकास में मित्र की अहम् भूमिका रहती है। परिचित तो बहुत होते हैं, पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं, क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है- परस्पर विश्वास। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. मित्रता का महत्व अब क्यों बढ़ गया है? स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- अ. “मित्रता का महत्व" ब. एकल परिवारों के चलने से मित्रता का महत्व अधिक बढ़ गया है स. वर्तमान में संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवार में बदल रहे हैं। फलतः विपरीत परिस्थतियों में मित्रता ही सहयोगी होती है। मैत्री एक ऐसा भाव है, जिसमें प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है मैत्री में परस्पर विश्वास अत्यंत आवश्यक है। गद्यांश - 06 विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की कथित समस्या का समाधान एक ही प्रकार से हो सकता है कि उन्हें जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव कराया जाए। अनुशासनहीनता से होने वाली हानियों एवं राष्ट्रीय क्षति से उन्हें परिचित कराया जाए। विद्यालय की जिम्मेदारियों को पूरा करने में उसे सहभागी बनाया जाए। अनुशासन, अध्ययन एवं आदर्श नागरिकता के गुणों का इनमें विकास किया जाए, तो कोई कारण नहीं विद्यार्थियों में असंतोष भड़के। आज का विद्यार्थी देश की वर्तमान स्थिति एवं समस्याओं से अप्रभावित नहीं रह सकता। विद्यार्थियों को बदलती हुई परिस्थियों से परिचित कराते हुए उनमें चरित्र निर्माण के लिए उदारता, त्याग, सेवा, विनय आदि गुणों से विभूषित किया जाये तो अनुशासनहीनता की समस्या का स्वतः समाधान हो जाएगा। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता दूर करने का उपाय लिखिए। स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर - अ. अनुशासनहीनता की समस्या । ब. जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव करवा कर अनुशासनहीनता को दूर किया जा सकता है। स. सारांश- विद्यार्थी को जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव करवा कर एवं विद्यालय के दायित्व सौंपकर अनुशासन की समस्या का समाधान किया जा सकता है। आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित कर उदारता, त्याग, सेवा, विनय आदि गुणों से विभूषित करने पर अनुशासनहीनता की समस्या का स्वतः समाधान हो जाएगा। गद्यांश - 06 अगर मनुष्य में कर्त्तव्यबोध नहीं है तो वह उच्च पद प्राप्त करके भी समाज के सापेक्ष असफल ही कहा जाएगा। उच्च शिक्षा व योग्यता तभी उपयोगी है, जब व्यक्ति समाज व राष्ट्र के हित में उसका उपयोग करें। कर्तव्य बोध की भावना से परिपूर्ण व्यक्ति ही अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में खरे उतरते हैं। सचमुच में ऐसे व्यक्ति ही सही अर्थ में राष्ट्र-सेवक होते हैं। एक शिक्षक कितना ही विद्वान क्यों न हो अगर उसमे अपने विद्यार्थियों के प्रति कर्तव्य-बोध न हो तो वह कभी भी राष्ट्र-निर्माता नहीं हो सकता। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। स. उच्च शिक्षा व योग्यता कब उपयोगी है? उत्तर- अ. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है- कर्तव्य बोध । ब. सारांश- कर्त्तव्यबोध से युक्त व्यक्ति ही समाज व राष्ट्र के लिये उपयोगी है ऐसे व्यक्ति ही सही अर्थ में राष्ट्र सेवक होते हैं। एक शिक्षक विद्वान होते हुए भी कर्तव्यबोध के अभाव में राष्ट्र-निर्माता नहीं बन सकता। स. उच्च शिक्षा व योग्यता तभी उपयोगी है जब वह समाज व राष्ट्र के लिये उपयोग की जा सके।
गद्यांश - 07 स्वस्थ्य शरीर के साथ ही स्वस्थ्य मनोरंजन भी मनुष्य के लिए आवश्यक है। खेल ऐसी क्रिया है जिससे न केवल शरीर का विकास होता है अपितु मनोरंजन भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि सभ्यता के आदिकाल से ही मानव समाज में खेलों का प्रचलन रहा है। आज से पचास हजार वर्ष पूर्व की मानव सभ्यता को दर्शाने वाले भित्ति-चित्र प्राचीन गुफाओं में देखने को मिलते हैं। भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बिना किसी खर्च के खेला जा सकता है। इन खेलों में कबड्डी, खो-खो आदि प्रसिद्ध है। प्रसन्नता की बात है कि कबड्डी व खो-खो को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हो गई है। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- अ. "खेलों का महत्व" ब. भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इन्हें बिना किसी खर्च के खेला जा सकता है। स. सारांश- खेलों के द्वारा न केवल मनोरंजन होता बल्कि शरीर भी स्वस्थ रहता है यही कारण है कि आदिकाल से ही खेलों की परम्परा रही है। इस क्रम में भारितीय खेलों जैसे- कबड्डी,खो-खो आदि को बिना किसी खर्च के भी खेला जा सकता है। प्रसन्नता की बात है कि इन खेलों को अंतराष्ट्रीय स्तर भी मान्यता प्राप्त हो गई है। गद्यांश - 08 एकल परिवारों के चलन से मित्रता का महत्व और अधिक बढ़ा है। संयुक्त परिवारों के अभाव में विपरीत परिस्थितियाँ मित्रता की माँग करती हैं। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसके सामाजिक विकास में मित्र की अहम् भूमिका रहती है। परिचित तो बहुत होते हैं, पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं, क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है-परस्पर विश्वास । प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. मित्रता का महत्व अब क्यों बढ़ गया है? स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- अ. "मित्रता का महत्व" ब. एकल परिवारों के चलने से मित्रता का महत्व अधिक बढ़ गया है स. वर्तमान में संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवार में बदल रहे हैं। फलतः विपरीत परिस्थतियों में मित्रता ही सहयोगी होती है। मैत्री एक ऐसा भाव है, जिसमें प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है मैत्री में परस्पर विश्वास अत्यंत आवश्यक है। गद्यांश -09 विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की कथित समस्या का समाधान एक ही प्रकार से हो सकता है कि उन्हें जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव कराया जाए। अनुशासनहीनता से होने वाली हानियों एवं राष्ट्रीय क्षति से उन्हें परिचित कराया जाए। विद्यालय की जिम्मेदारियों को पूरा करने में उसे सहभागी बनाया जाए। अनुशासन, अध्ययन एवं आदर्श नागरिकता के गुणों का इनमें विकास किया जाए, तो कोई कारण नहीं विद्यार्थियों में असंतोष भड़के। आज का विद्यार्थी देश की वर्तमान स्थिति एवं समस्याओं से अप्रभावित नहीं रह सकता। विद्यार्थियों को बदलती हुई परिस्थियों से परिचित कराते हुए उनमें चरित्र निर्माण के लिए उदारता, त्याग, सेवा, विनय आदि गुणों से विभूषित किया जाये तो अनुशासनहीनता की समस्या का स्वतः समाधान हो जाएगा। प्रश्न- अ. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। ब. विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता दूर करने का उपाय लिखिए। स. उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए। उत्तर- अ. अनुशासनहीनता की समस्या। ब. जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव करवा कर अनुशासनहीनता को दूर किया जा सकता है।
स. सारांश- विद्यार्थी को जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव करवा कर एवं विद्यालय के दायित्व सौंपकर अनुशासन की समस्या का समाधान किया जा सकता है। आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित कर उदारता, त्याग, सेवा, विनय आदि गुणों से विभूषित करने पर अनुशासनहीनता की समस्या का स्वतः समाधान हो जाएगा।
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पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- |
1. कृष्ण भारत वर्ष के लिये एक अमूल्य .......... मानदण्ड की तरह स्थित हैं। उत्तर- संदर्भ पुस्तक का नाम-नवनीत पाठ का नाम-महापुरुष श्रीकृष्ण लेखक का नाम-वासुदेवशरण अग्रवाल प्रसंग- लेखक ने कृष्ण के चरित्र को भारतीय संस्कृति का मानदण्ड बतलाया है । व्याख्या-लेखक कहते हैं कि कृष्ण का जीवन, चरित्र एवं व्यवहार भारत के लोगों के लिये अत्यंत मूल्यवान है । कृष्ण हमारी धरोहर है, हमारी राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक है। हमने आखिरकार उन्हीं के द्वारा प्रदत्त संस्कारों से रस लेरक अपनी जीवनचर्या निर्धारित की है। जिस प्रकार पृथ्वी का मानदण्ड हिमालय पर्वत है, उसी प्रकार मनुष्य के विकास का मानदण्ड श्रीकृष्ण हैं । उन्होंने हमें ब्रम्हचर्य धर्म त्या का शिक्षा दी । जीवन की मर्यादाओं को उन्होंने हमें बतलाया । कृष्ण के दिये संस्कारों को हम अपने से पृथक कर दें तो हमारे पास संस्कार के नाम पर कुछ भी शेष नहीं बचेगा। विशेष- (1) संस्कृनिष्ठ भाषा का प्रयोग। (2) आलोचनात्मक शैली का प्रयोग । मानव शरीर में पेट का स्थान नीचे है.................................................. विजय की घोषणा की। 3. मैं अपने देश का नागरिक हूँ.................................... यह मेरा अधिकार है। 4. हमारे देश को दो बातों की ............................कुरुचि की भावना को ही। 5. बदलत हुएसमय में लोक........................................................................युग-युग से प्रवाहमान रहा है। 6. इस पद के लिये ऐसे पुरुष की आवश्यकता ...........................................दीवान पाने पर बधाई देता हूँ।
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