MP BOARD CLASS 9 HINDI SOLUTIONS
MP Board Class 9th HINDI Solutions in Hindi Medium |
कवि परिचय- |
) सूरदास अथवा बिहारी की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर कीजिए- (1) दो रचनाएँ (2) भाव पक्ष-कला पक्ष (3) साहित्य में स्थान उत्तर- सूरदास- दो रचनाएँ - सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी । भाव पक्ष - सूरदास ने अपने काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, भाषा साहित्यिक होते हुए भी बोलचाल के बहुत निकट है । सूर की भाषा में प्रसाद एवं माधुर्य गुण की प्रधानता है । सूरदास के काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। साहित्य में स्थान - सूरदास साहित्य जगत के सूर्य हैं । उनका साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। (28) कवि परिचय- 1. तुलसीदास रचनाएँ - रामचरित मानस, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका आदि। भाव पक्ष - तुलसी साहित्य में लोकहित, लोकमंगल की भावना सर्वत्र मुखर है । आप राम के अनन्य भक्त है । आपके काव्य में समन्वयवादी दृष्टिकोण दार्शनिकता है । आप रससिद्ध कवि हैं। कला पक्ष - तुलसी ने अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्रज-भाषा को अपनाया। यद्यपि उन्होंने संस्कृत शब्दों का प्रचुरता से प्रयोग किया है तथापि कहीं भी वह बोझिल अथवा दुरूह नहीं हो पाई | अलंकारों एवं रसों के सहज मा प्रयोग से रचनाएँ प्रभावोत्पादक बन गई है। छन्द योजना में दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि का प्रयोग किया है | साहित्य के स्थान- तुलसी ने अपनी अप्रतिम काव्य प्रतिभा से साहित्य का गौरव बढ़ाया है । तुलसीदास महान समन्वयकारी कवि थे | उन्हें साहित्य के आकाश का चन्द्रमा कहा गया है। 2. सुभद्रा कुमारी चौहान दो रचनाएँ - मुकुल, त्रिधारा, बिखरे मोती। भाव पक्ष - सुभद्रा कुमारी चौहन की रचनाओं में समसामयिक देश-प्रेम.भारतीय इतिहास एवं संस्कृति की गहरी छाप पड़ी है। देश के नवचेतना त्याग बलिदान का अलख जगाने में आपके काव्य की महती भूमिका रहा है। कला पक्ष - आप मूलत: वीर रस की कवयित्री थी । गीत और लोकगीतों की गायन शैली में अपने भावों को स्वर देने में आप सिद्ध है। अलंकार और प्रतीकों के मोह से यक्त अनभतियों का सहज प्रकाशन ही आपकी काव्यगत विशेषता है। साहित्य में स्थान - जन-जन में देश प्रेम और स्वाभिमान की भावना जगाने वाले कवियों में आपका स्थान प्रमुख है। 3. महादेवी वर्मा रचनाएँ - नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा आदि। भाव पक्ष/कला पक्ष -छायावादी कवियों की वहत चतुष्टयी विदुषी कवयित्री की रचनाओं में राष्ट्रीय जागरण, मानवीय संवेदना के साथ ही साथ शत-प्रतिशत भारतीय परम्परा की अनगामिनी रही । गद्य-पद्य में पैठ होने के कारण रचनाए रस छन्द, अलंकारों से युक्त है । इनकी भाषा एवं संस्कृतनिष्ट खड़ी बोली है। साहित्य में स्थान - इनका काव्य उच्चकोटि का है। हिन्दी गीतों की मधुरतम कवयित्री के रूप में इनको अद्वितीय स्थान प्राप्त है| इनका हिन्दी कविता में विशिष्ट स्थान है। 4. कबीरदास रचनाएँ - साखी,सबद, रमैनी आदि । भाव पक्ष - कबीरदास जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। उन्होंने अपने काव्य में धर्म, रीति-नीति, समाज-सुधार, आध्यात्मक आदि विषयों पर अपने भाव व्यक्त किये हैं। कला पक्ष - कबीर की भाषा अपरिष्कृत है। उनकी भाषा सधुक्कड़ी तथा खिचड़ी कही जाती है । इनकी भाषा में ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी के अतिरिक्त अरबी, फारसी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । दृष्टांत और अलंकारों का बाहुल्य है। साहित्य में स्थान - कबीरदास समाज सुधारक एवं युग-निर्माता के रूप में सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे। (29) डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल अथवा रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्यिक परिचय निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर लिखिए- (1) दो रचनाएँ (2) भाषा-शैली (3) साहित्य में स्थान दो रचनाएँ - 'कल्पवृक्ष', उरज्योति', 'माता भूमि', 'पृथ्वी पुत्र', कला और संस्कृति' आदि। भाषा - अग्रवाल की भाषा शुद्ध परिमार्जित, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है । कहीं-कहीं इनकी भाषा में दुल्हता आ गई है। इनकी भाषा में सरल, सुबोध और सहज प्रवाह है । देशज शब्दों का प्रयोग भी हुआ है । अंग्रेजी, उर्दू या जनपदीय बोलियों के शब्द उनकी भाषा में कम मिलते हैं। शैली - इनकी शैली में पाण्डित्य, बौद्धिकता और भावात्मकता कम मिलते हैं । इनकी रचनाओं की मुख्य शैली विचारात्मक, गवेषणातत्मक, भावात्मक, सूत्रात्मक एवं उद्धरण शैली है । उनकी सूत्र शैली अत्यंत सरल एवं मार्मिक है। साहित्य में स्थान- अग्रवाल जी साहित्य, इतिहास, पुरातत्व के मूर्धन्य विद्वान थे । रामवृक्ष बेनीपुरी रचनाएँ - 'गेहूँ बनाम गुलाब', 'पतितों के देश में', 'माटी की मूरतें', 'लाल तारा', 'चिता के फूल' आदि। भाषा - इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है । इनकी भाषा में ओज है । इनकी सशक्त भाषा विचार और भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्ण समर्थ है । मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा में सुन्दरता आ गई है। अलंकार भाषा के सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक हुए हैं। शैली - बेनीपुरी की शैली का चमत्कार उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है । उनकी मुख्य शैली वर्णनात्मक, आलोचनात्मक, भावात्मक, प्रतीकात्मक एवं चित्रोपम शैली है। साहित्य में स्थान- भाषा शैली पर बेनीपुरी जी का असाधारण अधिकार है । इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और नाटका, निबंधों, कहानियों और रेखाचित्रों की रचना करके हिन्दी साहित्य के भण्डार में वृद्धि की। लेखक परिचय- 1. कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'- रचनाएँ - 'आकाश तारे', 'धरती के फल'. 'माटी हो गई सोना'. 'जिन्दगी मस्कराई'. 'दीप जले शंख बजे' आदि । भाषा - सस्कृतनिष्ट भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों की बहलता है । उनकी भाषा में अंग्रेजी और उर्दू के बोलचाल के शब्द आ गए हैं। इनकी भाषा में मुहावरों और उक्तियों का प्रयोग सहजता से हुआ है। भाषा में लाक्षणिकता है। शैली - मिश्रजी की गद्य शैली में भावों एवं विचारों के प्रवाह के साथ-साथ विषय का सुन्दर विवेचन किया गया है । उनके निबन्धों में शैली-भावात्मक, विचारात्मक, रेखाचित्र शैली, वर्णनात्मक एवं संवाद शैली है। साहित्य में स्थान - मिश्र जी ने हिन्दी गद्य को निबंध, रेखाचित्र, यात्रावृत आदि विधाओं में लिखा है। हिन्दी गद्यकार के रूप में मिश्र जी का विशिष्ट स्थान है। 2. प्रेमचन्द रचनाएँ - पूस की रात', 'कफन', 'ईदगाह', 'परीक्षा', 'गबन', 'गोदान', 'बूढ़ी काकी', 'पंच परमेश्वर' आदि । भाषा - आपकी रचनाओं में भाषा खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग किया गया है। भाषा सहज, सरल एवं बोधगभ्य है । भाषा में प्रभावशाली है। मुहावरे तथा कहावतों के प्रयोग से उनकी भाषा व बहुत ही मजेदार बन गई है । उर्दू शब्दों का मा प्रयोग हुआ है । तत्सम, तद्भव, देशी व विदेशी शब्दों का यथासम्भव प्रयोग हुआ है। शैली - उनकी कहानी में वर्णात्मक, भावात्मक, व्यंग्यात्मक आदि शैलियाँ प्रचलित हैं। वे कुशल संवाद योजना में भी सिद्धहस्त थे। साहित्य में स्थान - प्रेमचन्द अपने युग के लोकप्रिय उपन्यासकार है । वे उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध है । ग्रामीण जीवन के कुशल शिल्पी है।
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