Social Science सामाजिक विज्ञान

प्रश्न 7 : वैदिक सभ्यता का वर्णन कीजिए। अथवा वैदिक सभ्यता में धार्मिक जीवन का वर्णन कीजिए।

Answer :उत्तर-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद इन चारों वेदों एवं अन्य समकालीन साहित्य लेखन के काल को वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इसकी विवेचना निम्न प्रकार कर सकते हैं

(1) सामाजिक जीवन-वैदिक काल का भारतीय समाज आर्य ‘जनों से मिलकर बना था। आर्यों के पास हजारों पालतू पशु होते थे। जानवरों के लिये जहाँ चारा पानी उपलब्ध होता था, वहीं ये बस जाते। थे। आर्यों के सामाजिक संगठन का मुख्य आधार परिवार या कुटुम्ब था। परिवार का स्वामी या मुखिया सबसे वयोवृद्ध पुरुष होता था। वैदिक समाज में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। वर्ण चार थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र । सामाजिक व्यवस्था के संचालन के लिये आर्यों ने अपने जीवन को सौ वर्ष का मानकर उसे चार आश्रमों में बाँटा था; यथा-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम। स्त्रियों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलन में नहीं थीं। सूती, ऊनी, रेशमी वस्त्र उपयोग में लाये जाते थे। स्त्रियाँ श्रृंगार में विशेष रुचि लेती थीं। चावल, जौ, घी, दूध आर्यों का प्रमुख भोजन था। रथदौड़, घुड़सवारी, आखेट, नृत्य, जुआ, चौपड़ आदि मनोरंजन के साधन थे।

(2) आर्थिक जीवन-वैदिक सभ्यता ग्रामीण एवं कृषि प्रधान सभ्यता थी। इस समय गेहूँ, जौ, उड़द, मसूर तथा तिल की खेती होती थी। कृषि के साथ पशुपालन अन्य मुख्य व्यवसाय था। घोड़े, गाय, बैल, भेड़, बकरी आदि पालतू पशु थे। गृह उद्योग और दस्तकारी उन्नत अवस्था में थे। बढ़ई, लुहार, सुनार, चर्मकार सभी के कार्यों का यथोचित महत्व था। आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार का व्यापार होता था। वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। गाय वस्तु विनिमय का प्रमुख साधन थी। गाय के बाद निष्क' का उपयोग वस्तु विनिमय के लिये किया जाता था।

(3) धामिक जीवन-आर्यों के धार्मिक जीवन की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं

(i) वैदिक आर्य प्रकृति के उपासक थे। वे प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते थे। सूर्य, चन्द्र, वायु, मेघ, उषा, अदिति प्रमुख देवी-देवता थे।

(ii) प्रत्येक आर्य के लिये यज्ञ का विधान था। उनका विश्वास था कि यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं। पूजा पद्धति का मुख्य आधार 'यज्ञ' थे।

(iii) अनेक देवताओं को पूजते हुए वे एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। (iv) अश्वमेध, राजसूय, बाजपेय जैसे महायज्ञों का सम्पादन इसी काल में हुआ।

(4) राजनीतिक जीवन-आर्यों के राजनीतिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(i) वैदिक आर्य अनेक 'जन' (कबीले) के रूप में संगठित थे। एकजन' में एक वंश' या परिवार के व्यक्ति होते थे।

(ii) राजनीतिक व्यवस्था का आधार कुटुम्ब था। कुटुम्ब का प्रधान पिता होता था। अनेक कुटुम्बों को मिलाकर एक 'ग्राम' बनता था।

(iii) अनेक ग्रामों को मिलाकर विश' बनता था जिसका प्रधान ‘विशपति' कहलाता था।

(iv) अनेक विशों को मिलाकर 'जन' बनता था जिसका प्रधान ‘गोप' होता था।

(v) उत्तर वैदिक काल में राजा की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। राजा के प्रमुख कर्त्तव्य प्रजा की रक्षा करना, युद्ध करना, शान्ति बनाये रखना तथा प्रजा को न्याय प्रदान करना था।

इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि वैदिक सभ्यता के प्रशासनिक व सांस्कृतिक मूल्य वर्तमान भारत में आज भी प्रासंगिक हैं।